भारत में नागरिकता संशोधन कानून 2019 (Citizenship Amendment Act) लोकसभा (Lok sabha) और राज्यसभा (Rajya Sabha) से पास हो चुका है. इस कानून को लेकर पूरे देश में हंगामा बरपा हुआ है. कई लोगों ने इस कानून की तुलना इजराइल (Israel) के नागरिकता कानून से की है. इजराइल का नागरिकता कानून (Israeli citizenship law) भी आमतौर पर एक ही धर्म के चारों ज्यादा घूमता है.
आइए जानते हैं क्या है इजराइल का नागरिकता कानून
इजराइल की स्थापना 1948 में हुई. अरब-इजराइल युद्ध के बाद इजराइल के रूप में नए देश का जन्म हुआ. उससे पहले ये इलाका मेंडेटरी फिलीस्तीन कहलाता था. जब इजराइल एक देश के रूप में सामने आया तो उसकी परिकल्पना यही थी कि ये दुनियाभर के यहूदियों का देश होगा.
चूंकि इस देश के लिए यहूदियों ने इसी आधार पर संघर्ष किया था, लिहाजा 1950 में जब उनकी संसद में नागरिकता कानून का प्रारूप पेश हुआ तो इस आधार को ध्यान में रख गया कि ये राष्ट्र यहूदियों के लिए है. लेकिन भौगोलिक तौर पर इजराइल के इस हिस्से में मुस्लिम अरब भी काफी बड़ी संख्या में रहते थे, लिहाजा नागरिकता के कानून को लेकर इजराइल में हमेशा से विवाद की स्थिति रही है.
CAA पर जारी हंगामे के बीच जानिए क्या है इजरायल का नागरिकता कानून
मोटे तौर पर आप कह सकते हैं कि इजराइल में यहूदी धर्म के अलावा अन्य धर्म के लोगों के लिए ना केवल नागरिकता हासिल करना मुश्किल है तो रहना भी. इस समय इजराइल में करीब 74.2 फीसदी आबादी यहूदियों की है तो 20.9 फीसदी अरब रहते हैं. 4.8 प्रतिशत अन्य धर्मों के लोग. अरब आबादी में बड़ी संख्या मुस्लिमों की है तो कुछ द्रुज और अन्य छोटे-मोटे धर्मों की.